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श्रीराम ज्ञान यज्ञ एवं श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के दूसरे दिन आज वंदना प्रकरण एवं शिव चरित्र का प्रसंग प्रस्तुत किया गया…

भिलाई नगर। श्रीराम जन्मोत्सव समिति एवं जीवन आनंद फाउण्डेशन द्वारा आयोजित श्रीराम ज्ञान यज्ञ एवं श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के दूसरे दिन आज वंदना प्रकरण एवं शिव चरित्र का प्रसंग प्रस्तुत किया गया। जहां कथावाचक राष्ट्रीय संत श्री चिन्मयानंद बापू ने उपस्थित श्रद्धालुगणों को आध्यात्मिक मार्गदर्शन देते हुए कहा कि श्रीराम कथा भारत के चरित्र का पोषण करती है। उन्होंने श्री राम को देश का संयम और भगवान कृष्ण को बुद्धि बताया। चिन्मयानंद बापू ने कहा कि जिनको अपराजित पौरुष और पूर्ण परमात्मा की चाहत होती है, वही भगवान श्रीराम की शरण में आते हैं।

कथा वाचक चिन्मयानंद बापू ने कहा कि गोस्वामी तुलसीदास कलियुग के वंदना के शीघ्र आचार्य हैं। उन्होंने एक महासूत्र दिया कि अपने आराध्य का दर्शन जगत में हो जाए तो जीवन से बैर- वैमनस्य स्वत: समाप्त हो जाएगा। यदि हम सब में प्रभु का दर्शन करें तो सबसे प्रेम व श्रद्धा हो जाएगी। श्रीरामचरित मानस का वंदना प्रकरण अद्भुत है। सबको प्रणाम करने की सनातन परंपरा व्यक्ति को सर्वप्रिय बना देती है। भगवान श्रीराम के चरित्र के पूर्व भूत-भावन भगवान शिव की कथा कही गई है। श्रद्धा एवं विश्वास एक-दूसरे के पूरक हैं। उन्होंने भरत जी का श्री राम के प्रति प्रेम, लक्ष्मण का प्रेम, हनुमान जी का सेवा-भाव का उदाहरण दिया। उन्होंने उर्मिला जी के पति धर्म की चर्चा करते हुए कहा कि महिलाएं अगर पतिव्रत धर्म का पालन करें तो अखंड सौभाग्यवती रहकर मोक्ष को पा सकती हैं।

चिन्मयानंद बापू ने शिव चरित्र का विश्लेषण करते हुए बताया कि गोस्वामी तुलसीदास ने शिव का चरित्र इसलिए रखा ताकि लोग रामभक्ति में दृढ निष्ठावान बन सकें। भगवान शिव की तरह श्रीराम में अनन्य निष्ठा रखने वाला उदाहरण कहीं अन्यत्र मिलना दुर्लभ है। चिन्मयानंद बापू ने कहा कि भगवान शिव ने निष्पाप सती को केवल इसलिए त्याग दिया क्योंकि श्रीराम की परीक्षा लेने के लिए उन्होंने भगवती सीता का रूप धारण किया। यद्यपि भगवान शिव सीता को अपनी इष्ट देवी के रूप में मानते थे। उन्होंने श्रीराम कथा को आगे बढ़ाते हुए पार्वती के जन्म तथा शिव विवाह के प्रसंग पर रोचक व्याख्या प्रस्तुत करते हुए कहा कि भगवान शिव का स्वरूप लोक कल्याणकारी है। भगवान शिव के त्रिशूल का दर्शन करने से प्राणी के तीनों प्रकार के शूल नष्ट हो जाते हैं। दैहिक, देविक तथा भौतिक संताप शिव भक्तों को छू भी नहीं सकते। भगवान शिव के हाथ में सुशोभित डमरू के नाद से ही वेदों की ऋचाएं, संगीत के सातों स्वर व्याकरण के सूत्रों का सृजन हुआ है। भगवान शिव के भव्य भाल पर सुशोभित गंगा त्रेलोक्य को पवित्र तथा पावन बनाती है।

वहीं दूसरी और उनके ललाट पर स्थित तीसरा नेत्र ज्ञान का प्रतीक है। चिन्मयानंद बापू ने बताया कि यह तीसरा नेत्र प्रत्येक प्राणी के पास ज्ञान के रूप में विद्यमान है लेकिन सदगुरु की कृपा के बगैर इसका खुलना असंभव है। उन्होंने आगे बताया कि सती की गलती सिर्फ इतनी थी कि उन्होंने श्रीराम कथा को पूरी निष्ठा के साथ श्रवण नहीं किया। इसलिए वे सीता के वियोग में तड़पते राम को पहचान सकी और वे ही सती दूसरे जन्म में पार्वती बनी। उन्होंने भगवान शिव को प्राप्त करने के लिए कठोर तपस्या की तब भगवान शिव ने उन्हें श्रीराम की आज्ञा से पुन: स्वीकार किया।

मंत्रोच्चार से गुंजायमान रहा परिसर
श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ के दूसरे दिन मंत्रोच्चार से सारा आयोजनस्थल गुंजायमान रहा। लक्ष्मी एवं विष्णु भगवान के सहस्र नामों के साथ मुख्य यजमान व अन्य भक्तों ने यज्ञ में आहुतियां डालीं। श्रीराम जन्मोत्सव समिति एवं जीवन आनंद फाउण्डेशन के तत्वावधान में आयोजित महायज्ञ के दूसरे दिन भक्तों ने यज्ञ मंडप की परिक्रमा कर अपने को लक्ष्मीनारायण भगवान से जोड़ा।

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