• business
  • Chhattisgarh
  • जैविक पद्धति से मछली पालन कर रहे जिले के किसान, विधायक-कलेक्टर ने किया प्रोत्साहित….

जैविक पद्धति से मछली पालन कर रहे जिले के किसान, विधायक-कलेक्टर ने किया प्रोत्साहित….

जैविक पद्धति से मछली पालन कर रहे जिले के किसान, विधायक-कलेक्टर ने किया प्रोत्साहित….

 

तिरगा और बोड़ेगांव में जैविक पद्धति से मत्स्यपालन कर रहे किसानों के प्रक्षेत्र का कलेक्टर डाॅ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे ने किया निरीक्षण, कहा जैविक पद्धति से मत्स्यपालन में आय की अच्छी संभावनाएं…

 

दुर्ग – जिले के किसान हाइटेक तरीके से जैविक मत्स्यपालन की ओर बढ़ रहे हैं। इन किसानों द्वारा किये जा रहे नवाचारों को देखने आज विधायक श्री अरुण वोरा, कलेक्टर डाॅ. सर्वेश्वर नरेंद्र भुरे एवं जिला पंचायत सीईओ श्री सच्चिदानंद आलोक ग्राम तिरगा और ग्राम बोड़ेगांव पहुंचे। गांव बोड़ेगांव के किसान रत्नाकर जंपाला ने स्टेनलेस स्टील से बना इजराइली पद्धति रिसाइक्लिंग एक्वा प्लांट आरंभ किया है। इसी तरह ही तिरगा में सुरेंद्र बेलचंदन भी आर्गेनिक तरीके से मत्स्यपालन कर रहे हैं। इससे उनकी आय काफी बढ़ी है। विधायक श्री वोरा ने कहा कि आर्गेनिक पद्धति से मत्स्यपालन करने से मत्स्यपालकों की आय भी बढ़ेगी, लागत भी घटेगी और प्राकृतिक संसाधनों के ही इस्तेमाल से बेहतर खेती हो पाएगी। तिरगा में किसान बेलचंदन ने बताया कि वे गोबर खाद का अच्छा उपयोग कर रहे हैं। प्लैंकटन के उत्पादन से मत्स्यवृद्धि अच्छी होती है। किसान रत्नाकर जंपाला ने बताया कि उनका फिश फार्म यूनिट 13 हजार स्क्वायर मीटर में फैला है। यह एकड़ का चैथा हिस्सा है लेकिन यहां लगभग उतनी ही मछलियां पल रही हैं जितनी मछली पालन के लिए बनाये गए 50 एकड़ में पलतीं। उन्होंने कहा कि यहां जैविक तरीके से मत्स्यपालन करने के इच्छुक किसानों को ट्रेनिंग भी दी जाएगी। कलेक्टर ने कहा कि खेती के साथ पशुपालन और मत्स्यपालन जैसी अनुषांगिक गतिविधियां बेहद जरूरी हैं। श्री रत्नाकर और श्री बेलचंदन जैसे किसान पशुपालन कर गोबर खाद का कितना बेहतर उपयोग कर रहे हैं। पूरे देश में फिशिंग मार्केट में जबर्दस्त संभावना है। इस क्षेत्र में यदि अंचल के किसान जैविक तरीके से उत्पादित मछलियां लेकर जाएं और आधुनिक तरीकों का उपयोग कर कम लागत में अधिकतम उत्पादन करें तो आय की अच्छी संभावनाएं बनती हैं। उल्लेखनीय है कि श्री रत्नाकर की फिश यूनिट का माडल इजराइल का है यहां एक-एक बूंद बचाकर खेती करना होता है। श्री रत्नाकर बताते हैं कि यदि मैं एक एकड़ में मछली पालन करूं तो मुझे कम से कम साढ़े चार फीट पानी का स्तर रखना होगा, इसके लिए दस एचपी मोटर का पंप लगाना होगा। इसमें बेहिसाब पानी लगेगा। इस पद्धति में पानी का काफी कम उपयोग होता है क्योंकि यह रिसाइकल हो जाता है। उन्होंने बताया कि इस प्लांट में ड्राई मछली बीट भी काफी निकलती है। हर दिन लगभग 60 किलोग्राम सूखी मछली बीट निकलती है। इस तरह से इसे बेचकर भी लाभ की काफी संभावनाएं बन जाती हैं।
*विदेशों की सबसे अच्छी टेक्नालाजी अपनाकर

मछलीपालन कर रहे किसान*- श्री रत्नाकर की फिश यूनिट में रिसाइक्लिंग पानी का माडल इजराइल का है। मछलियों को पूरी तरह संक्रमण से मुक्त करने 20 लाख रुपए की लागत से उन्होंने बायो चिप लगाई है। यह बायो चिप न्यूजीलैंड से मंगाई है। इसकी विशेषता है कि इसमें एक खास तरह का बैक्टीरिया है जो मछलियों में पनपने वाले और इसे नुकसान पहुंचाने वाले कीटों को खा लेता है।
*मत्स्यपालन में बेहतर आय की संभावना इसलिए*- अभी यहां के मछली उत्पादक स्थानीय बाजार की जरूरतों को पूरा नहीं कर पाते। मछलियां आंध्रप्रदेश और कोलकाता से बड़ी मात्रा में आती हैं। ऐसे में यदि किसान जैविक तरीके से मछली पालन कर बाजार की जरूरतों को पूरा करें तो जैविक होने की वजह से आय भी अच्छी होगी और आर्थिक लाभ भी बढ़ जाएगा।

ADVERTISEMENT