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भूपेश सरकार ने छग में ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत करने फिर कसी कमर
रायपुर। भूपेश सरकार ने छत्तीसगढ़ में ओबीसी आरक्षण को 14 से बढ़ाकर 27 प्रतिशत करने के लिए कमर कस ली है। सरकार ने ओबीसी आरक्षण 27 प्रतिशत और आरक्षित रुप से कमज़ोर तबके के लिए 10 प्रतिशत आरक्षण के लिए कानूनी प्रावधान करने जा रही है। मुख्यमंत्री भूपेश बघेल के साथ रविवार को मंत्रियों के साथ हुई बैठक में इस पर चर्चा की गई। बैठक में तय किया गया कि राज्य में आरक्षण का प्रतिशत बढ़ाने के लिए पीडीएस के डाटा को आधार बनाया जाएगा। गांवों में ओबीसी तबके की स्थिति का आंकलन प्रदेश के हर ग्राम पंचायतों में गांधी जयंती 2 अक्टूबर को होने वाली ग्राम सभाओं में किया जाएगा।
राज्य सरकार अन्य पिछड़ा वर्ग के आरक्षण के लिए पीडीएस सिस्टम के आंकड़ों को आधार बनाएगी। राज्य में पिछड़ा वर्ग के 31 लाख 52 हज़ार 329 परिवार के 1 करोड़ 18 लाख 26 हज़ार 464 सदस्य गरीबी रेखा के नीचे हैं जबकि 3 लाख 95 हज़ार 444 परिवार के 12 लाख 55 हज़ार 972 लोग गरीबी रेखा से ऊपर हैं। यानि ओबीसी की करीब 88 फीसदी आबादी गरीबी रेखा के नीचे है। चूंकि राज्य में करीब 99 फीसदी राशन कार्ड केंद्र सरकार के आधार से जुड़े हैं. ये आंकड़े प्रामाणिता को पुख्ता बनाएगें।
राज्य सरकार ओबीसी आरक्षण को बढ़ाने का फैसला उस वक्त कर रही है, जब राष्ट्रीय स्तर पर भाजपा की मातृ संस्था आरएसएस के कई पदाधिकारी आरक्षण को आर्थिक आधार पर करने की बात कहकर नई बहस को जन्म दे रहे हैं। ज़ाहिर है इस फैसले का असर राष्ट्रीय राजनीति पर भी पड़ने की संभावना है।
ज्ञात हो कि नरेन्द्र मोदी ने आर्थिक आधार पर कमज़ोर तबके को दस फीसदी आरक्षण देने का ऐतिहासिक निर्णय किया है। इसके लिए उन्होंने संवैधानिक संशोधन कराया। संविधान में पहले केवल सामाजिक और शैक्षणिक स्तर पर आरक्षण देने का प्रावधान था। लेकिन जनवरी 2019 में मोदी ने आरक्षण के आधार में आर्थिक पिछड़ापन भी संविधान के 124 वें संशोधन के ज़रिए शामिल किया गया।
इसी साल छत्तीसगढ़ में सत्ता में आने के बाद 15 अगस्त 2019 को मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने समूचे आरक्षण को 58 फीसदी से बढ़ाकर 82 फीसदी करने की घोषणा की थी। इस पर अमल करते हुए राज्य सरकार ने 4 सितबंर 2019 को अध्यादेश लाकर इस फैसले को लागू कर दिया।
इस फैसले के खिलाफ आरटीआई एक्टिविस्ट और मौजूदा कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय के कबीर पीठ के अध्यक्ष कुणाल शुक्ला हाईकोर्ट गए। हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस एम रामचंद्रन ने 4 अक्टूबर को इस फैसले पर रोक लगा दी और 27 फरवरी 2020 को राज्य सरकार के अध्यादेश को रद्द कर दिया।