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उत्साह से मना छेरछेरा पर्व, बच्चे दान पाने पहुंचे घर-घर…

उत्साह से मना छेरछेरा पर्व, बच्चे दान पाने पहुंचे घर-घर…

अंडा। अंचल में महापर्व छेर-छेरा की धूम है। ग्रामीणों में उत्साह का माहौल है। पर्व पर ग्रामीणों ने परिवार के सदस्य और जान पहचान वालों के साथ नई फसल की खुशियां बांटीं। परंपरानुसार बच्चों ने घर-घर जाकर अन्न् दान मांगा। सुबह से ही बच्चों की टोलियां अन्न् दान मांगते दिखे। यह हाल शहर से लेकर ग्रामीण अंचलों में रहा। शहर से लगे हुए टार पाली गांव में बच्चे व बड़ों को डंडा नृत्य कर छेरछेरा की परंपरा का निर्वहन करते देखा गया।

छेरछेरा छत्तीसगढ़ के प्रमुख लोकपर्वों में से एक है। इस दिन अन्न् दान मांगने की परंपरा है। कृषक परिवार इस मौके पर विशेष पूजा-अर्चना करते हैं। इस दिन घरों के दरवाजे पर सुबह से आवाज सुनी जाती है… अरन बरन कोदो दरन, जभे देबे तभे टरन… छेरछेरा, माई कोठी के धान ले हेरते हेरा… दरअसल, इस दिन मोहल्लों में बच्चों और युवाओं की टोलियां सुबह से दान मांगने के लिए निकल पड़ती हैं।

यह त्यौहार पौष महीने के पूर्णिमा के दिन से शुरू होता है और लगभग सप्ताह भर तक चलता है इस कारण इस त्यौहार को पोष पुनी त्यौहार कहा जाता है। आदिवासियों के साथ गैर आदिवासी वर्ग के लोग भी इस त्यौहार को मनाते हैं। यह इस क्षेत्र की जनजाति के लोगों का प्रमुख त्यौहार है। पौष माह में मनाए जाने वाला पारंपरिक त्योहार छेरछेरा पुनी नगर के साथ साथ ग्रामीण अंचलों में भी बड़ी धूमधाम से मनाया गया। मौसम के बदलते मिजाज के बावजूद इस पुन्नी त्योहार में बच्चों का उत्साह कम नहीं हुआ।सुबह से ही बच्चे सज संवरकर हाथों में थैला लिए नगदी जमा करने निकल पड़ी पारंपरिक गीत छेरछेरा एवं नृत्य करते हुए झुंड में बच्चों ने छेरछेरा त्योहार मनाया। इस अवसर पर छेरछेरा पुनी नृत्य कर रहे बच्चों, बुजुर्गों को ग्राम व नगरवासी जो भी उनसे बन पड़ा उन्हें दान किया। गौरतलब हो कि छेरछेरा त्योहार के दिन लोग कामकाज पूरी तरह बंद रखते है। इस दिन लोग प्राय: गांव छोड़ कर बाहर नहीं जाते उत्सव मनाते है।

आधुनिक दौर भी परंपरा बरकरार: देखा जाए तो आधुनिक इंटरनेट के जमाने मे भी यह परंपरा आज भी जीवित है और आज भी लोग छेर छेरा मांगने वालों को खाली हाथ नही लौटाते है। ऐसी मान्यता है कि छेर-छेरता मांगने वालों के वेष में स्वयं महादेव उनके द्वारा आए हैं और उन्हें खाली हाथ लौटाने वाले के घर में बरकत नहीं होती है। छेर-छेरता मांगने वाले गांव में लोगों के घरों के सामने टोकरी लाकर रख देते हैं।

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