- Home
- Chhattisgarh
- social news
- विश्व सामाजिक न्याय दिवस:- सामाजिक न्याय का मतलब समाज के सभी वर्गों का विकास तथा विकास के संसाधन उपलब्ध कराना…
विश्व सामाजिक न्याय दिवस:- सामाजिक न्याय का मतलब समाज के सभी वर्गों का विकास तथा विकास के संसाधन उपलब्ध कराना…
विश्व सामाजिक न्याय दिवस:- सामाजिक न्याय का मतलब समाज के सभी वर्गों का विकास तथा विकास के संसाधन उपलब्ध कराना…
दुर्ग – राजेश श्रीवास्तव जिला न्यायाधीश/ अध्यक्ष जिला विधिक सेवा प्राधिकरण दुर्ग के मार्गदर्शन एवं निर्देश पर व्यवहार न्यायाधीश प्रशांत देवांगन, कुमारी रुचि मिश्रा, कुमारी आकांक्षा सक्सेना, श्री रजत निराला एवं पैरा लीगल वालंटियर द्वारा दुर्ग जिले के विभिन्न स्थानों में विश्व सामाजिक न्याय दिवस के उपलक्ष्य पर विधिक जागरूकता शिविर के माध्यम से बताया गया कि दुनिया में लोगों के बीच कई तरह के भेदभाव पैदा हो रहे हैं, जो कि लोगों के बीच एक दूरी का कारण बन गया हैं । इन भेदभाव के कारण कई लोगों को कई तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है । वहीं दुनिया में इस तरह की बुराइयों को खत्म करने के लिए हर साल विश्व सामाजिक न्याय दिवस, 20 फ़रवरी को मनाया जाता है । इस दिवस को कई उद्देश्यों को प्राप्त करने के मकसद के लिए बनाया गया है । ये दिवस मुख्य तौर से नस्ल, वर्ग, लिंग, धर्म, संस्कृति,भेदभाव, बेरोजगारी से जुड़ी हुई कई समस्याओं को हल करने के उद्देश्य से हर साल मनाया जाता है । वर्ष2022 की थीम औपचारिक रोजगार के माध्यम से सामाजिक न्याय प्राप्त करना है।
सर्वप्रथम हमें संविधान की प्रस्तावना में ही सामाजिक न्याय के तत्व दिख जाते हैं, संविधान की प्रस्तावना में नागरिकों के लिये राजनीतिक, आर्थिक व सामाजिक न्याय के साथ स्वतंत्रता के सभी रूप शामिल हैं। प्रस्तावना नागरिकों को आपसी भाईचारा व बंधुत्व के माध्यम से व्यक्ति के सम्मान तथा देश की एकता और अखंडता सुनिश्चित करने का संदेश देती है। बंधुत्व का उद्देश्य सांप्रदायिकता, क्षेत्रवाद,जातिवाद तथा भाषावाद जैसी बाधाओं को दूर करना है । भारत के सविधान को बनाते समय देश में सामाजिक न्याय का खासा ध्यान रखा गया था । संविधान में कई ऐसा प्रावधान मौजूद हैं, जो कि सामाजिक न्याय को सुनिश्चित करने के लिए बनाए गए हैं । सामाजिक न्याय के लिए लैंगिक समानता, सामाजिक सुरक्षा तथा प्रवासियों के अधिकारों की सुरक्षा की जानी आवश्यक है। सामाजिक न्याय तभी सुनिश्चित हो सकता है जब लोगों को लिंगए आयु, नस्ल, धर्म अथवा संस्कृति के कारण समस्याओं का सामना न करना पड़े।
आज भी आम आदमी अपनी कई मूल जरुरतों के लिए न्याय प्रकिया को नहीं जानता जिसके आभाव में कई बार उसके मानवाधिकारों का हनन होता है और उसे अपने अधिकारों से वंचित रहना पड़ता है । आज भारत में गरीबी, महंगाई और आर्थिक असमानता हद से ज्यादा है,भेदभाव भी अपनी सीमा के चरम पर है,ऐसे में सामाजिक न्याय बेहद विचारणीय विषय है ।