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हिंदी साहित्य भारती- दुर्ग जिला इकाई ने किया होली के पावन पर्व पर “होली साहित्यिक गोष्ठी” का आयोजन…

 

हिंदी साहित्य भारती- दुर्ग जिला इकाई ने किया होली के पावन पर्व पर “होली साहित्यिक गोष्ठी” का आयोजन…

भिलाई – हिंदी साहित्य भारती, दुर्ग इकाई के द्वारा रंगों के पावन पर्व होली के शुभ अवसर पर “साहित्यिक गोष्ठी” का आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विख्यात छंदकार अरुण निगम जी एवं विशेष अतिथि श्रीमती अनिता कारदेकर जी रहीं।
इस अवसर पर हिंदी साहित्य भारती छ. ग. के प्रांतीय अध्यक्ष आदरणीय डॉ. बलदाऊ राम साहू, हिंदी साहित्य भारती गरियाबंद के अध्यक्ष श्री मुन्ना लाल देवदास, जिला दुर्ग अध्यक्षा डॉ हँसा शुक्ला, अमृता मिश्रा, चंद्रकांत साहू, डॉ. दीक्षा चौबे, विक्रम सिंह अपना, बेनीराम वर्मा, सहित कई कविगण सम्मिलित रहे।
यह कार्यक्रम पूरी तरह से फाग के रंगों से सरोबार रहा।
इस गौरवशाली पटल पर कवियों ने अपनी भावपूर्ण प्रस्तुति देकर उपस्थित श्रोतावृंद का मन मोह लिया।
कार्यक्रम का शुभारंभ डॉ. दीक्षा चौबे के माँ सरस्वती जी की स्तुति से हुआ।
मुख्य अतिथि की आसंदी से अरुण निगम जी ने कहा कि धीरे धीरे त्यौहार अपने वास्तविक स्वरुप को खोते जा रहे हैं। हमें होली वर्तमान परिस्थिति के अनुरूप मनाना चाहिए। नए विचारों का स्वागत करें तथा संस्कृति के मूल भाव को अक्षुण्ण रखना न भूलें।
विशिष्ट अतिथि श्रीमती अनिता कारदेकर जी ने कहा कि हिंदी साहित्य में जितना होली पर लिखा गया है किसी अन्य त्यौहार पर नहीं लिखा गया है। भक्ति साहित्य में होली का नायक कृष्ण व नायिका राधा रही हैं। होली प्रकृति का उत्सव है। प्रकृति गुलाबी, लाल, पीले रंग से रंगी हुई अपने चरम उत्कर्ष में होती है। होली सद्भावना, प्रेम, उल्लास का उत्सव है।
अपने ओजस्वी उद्बोधन में प्रांतीय अध्यक्ष डॉ. बलदाऊ राम साहू जी ने होली की शुभकामनाएं देते हुए कहा कि साहित्य मनुष्य को जीवंत करता है। साहित्यकार जो समाज में देखता है उसे अपनी रचना का आधार बनाता है।साहित्य से हर्ष उल्लास का निर्माण होता है। साहित्य का निर्माण होता है।
साहित्य में होली के विविध रूपों को विभिन्न कलाओं में एवम वर्तमान में अलग अलग तरह से दिखाया गया है।
काव्य सृजन क्षमता उसे माँ शारदा की असीम कृपा से प्राप्त होती है। इस ईश्वर प्रदत्त सृजनशीलता रूपी उपहार को साहित्य के माध्यम से समाज तक पहुँचाने में हमें अपनी महती भूमिका निभानी होगी। साथ ही इसमें बच्चे बूढ़ों महिलाओं को जोड़ना होगा।
हिंदी साहित्य भारती का उद्देश्य नवोदित रचनाकारों को राष्ट्रीय मंच प्रदान करना है। इससे साहित्यकारों की एक नई पीढ़ी तैयार होगी। उनकी रचना
आओ  मिलकर  नाचें-गाएँ होली में
रंग,  गुलाल,  अबीर लगाएँ होली में।
जीवन में  रंग विविध हैं देखें तो
हम  भी  तो नव  रंग बन जाएँ होली  में।
ने सबका मन फाग के रंग से रंग दिया।
कवयित्री अमृता मिश्रा जी ने “रंगों का त्यौहार है आया, आया आया फागुन आया। मिलन प्रेम का उत्सव है ये, खुशियों की सौगत लाया। फागुन आया फागुन आया” के माध्यम से होली का रंग बिखेरा ।
विक्रम सिंह अपना जी ने कहा कि होली के त्यौहार का रंग एक दिन ही रहता है और यदि परमात्मा का रंग आत्मा में लग जाए तो वह शाश्वत रहता है। उन्होंने अपनी कविता मुझको ऐसा रंग लगा दो मोर मुकुट बनवारी, जित देखूं बस तू ही तू हो माधव कृष्ण मुरारी के द्वारा ब्रज की होली और उसके आत्मिक आनंद को प्रस्तुत किया।
चंद्रकांत साहू ने अपनी कविता के माध्यम से
होली आओ आज नए सिरे से समझें ओर मनाएं
त्योहारों में छिपी हुई है बड़ी बड़ी शिक्षाएँ
हार न माने अनीति से अंधेरों में आओ जीवन ज्योत जलाएं।
होली को उत्सव और सद्भावना का पर्व बताया।
मुन्ना लाल देवदास जी ने अपनी रचना
राधा बोली दुनिया चाहे कुछ भी करे ठिठोली, मैं तो आज से आपकी हो ली द्वारा सबका मन जीत लिया।
डॉ. दीक्षा चौबे ने अपनी कविता “मन के भेद मिटायेंगे आओ होली में इस बार
गीत खुशी के गाएंगे आओ होली में इस बार” द्वारा गोष्ठी में उल्लास का रंग भर दिया।
डॉ. हंसा शुक्ला ने होली पर आधारित अत्यंत हृदयस्पर्शी कथा का वाचन किया।
साथ ही उन्होंने अपनी रचना “कृष्ण खेले ब्रिज में राम खेले अवध में होली
रंगों से सरोबार सब बोलें प्रेम की बोली”
द्वारा अनंत प्रेम का सुंदर चित्र उकेरा।
कार्यक्रम का सफल संचालन डॉ. दीक्षा चौबे ने किया।
इस गोष्ठी में हिंदी साहित्य भारती
दुर्ग जिला इकाई के सभी सदस्य एवं पदाधिकारीगण उपस्थित हुए।
यह ऑनलाईन कार्यक्रम जूम मीट एप पर आयोजित किया गया।
यह जानकारी हिंदी साहित्य भारती, दुर्ग के जिला मीडिया प्रभारी विक्रम सिंह ने दी।

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