भारतीय जवानों की मदद के लिए हिमालय की चोटी तक चढ़ जा रहे हैं चुशुल के लोग
नई दिल्ली । लद्दाख के चुशुल गांव के लोग अपने गांव को चीनी नियंत्रण में आने से बचाने के लिए भारतीय सेना की मदद कर रहे हैं। इसके लिए वे ब्लैक टॉप के रूप में जानी जाने वाली हिमालय की पर्वत चोटी की यात्रा करने से भी परहेज नहीं कर रहे हैं। 100 से अधिक पुरुष, महिला और युवा लड़कों के साथ अधेड़ चावल की बोरी, ईंधन के डिब्बे और अन्य जरूरी सानानों के साथ ब्लैक टॉप की ओर बढ़ रहे हैं, जहां भारतीय सेना के सैकड़ों जवान टेंट लगाकर रहते हैं और चीनी घुसपैठ का मुंहतोड़ जवाब दे रहे हैं। आने वाले सर्दियों के महीनों में, यहां तापमान शून्य से 40 डिग्री सेल्सियस नीचे चला जाता है। ग्रामीणों को डर है कि अगर वे भारतीय सेना को चीन की सीमा से लगे पर्वतों पर अपने पोस्ट को सुरक्षित रखने और आगे कड़ाके की ठंड के लिए सैनिकों को तैयार करने में मदद नहीं करते हैं तो उनका गांव जल्द ही चीनी नियंत्रण में हो सकता है। चुशूल के एक 28 वर्षीय युवक टेरसिंग ने कहा हम भारतीय सेना को उनके पोस्ट को तुरंत सुरक्षित करने में मदद करना चाहते हैं। हम उन्हें जरूरी सामानों की आपूर्ति कर रहे हैं। एक दिन में कई बार हम जाते हैं। हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि सेना को बहुत अधिक समस्याओं का सामना नहीं करना पड़े। भारत और चीन के बीच लद्दाख के चुशुल क्षेत्र से पैंगोंग त्सो सहित कई अन्य जगहों पर संघर्ष की स्थिति बनी हुई है। हालांकि दोनों देशों के बीच बातचीत का दौर भी जारी है। भारत ने गालवान घाटी हिंसक झड़प जिसमें 20 भारतीय सैनिक शहीद हो गए थे के बाद दोनों देशों के बीच हथियारों का उपयोग नहीं करने की शर्तों को भी बदल दिया है। आपको यह भी बता दें कि तनाव कम करने के लिए विदेश मंत्री एस जयशंकर और उनके चीनी समकक्ष वांग यी हाल ही में मास्को में मिले। बैठक के बारे में एक संयुक्त प्रेस बयान के अनुसार, दोनों नेताओं ने भारत-चीन सीमा क्षेत्रों के साथ-साथ भारत-चीन संबंधों पर हुए घटनाक्रम पर स्पष्ट और रचनात्मक चर्चा की। दोनों पक्ष सर्दियों के लिए वहां रहने की योजना बना रहे हैं। वे अनुमान लगा रहे हैं कि बातचीत का कोई हल नहीं निकलने वाला है। इस हफ्ते, चुशुल के ग्रामीणों ने सैनिकों को ब्लैक टॉप पर आपूर्ति लाने के लिए अपने नॉन-स्टॉप प्रयासों को जारी रखा है। टेरसिंग ने कहा हाल ही में जिस क्षेत्र में संघऱ्ष हुआ था, वहां अभी तक सड़क नहीं है। एक अन्य ग्रामीण कोंचक त्सेपेल ने कहा, “जिन नई जगहों पर चीनी और भारतीय सैनिक आमने-सामने हैं, वे जगह रहने के हिसाब से अनुकूल नहीं है। सेना को टेंट में रखा जा रहा है। मुझे नहीं पता कि वे बिना सड़क के रहने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचे का निर्माण करने जा रहे हैं।