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“गुगली” भिलाई के ऐसे अल्हड़ दोस्तों की कहानी… जो दोस्तों पर अपना जान छिड़कते…और उनके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं.…!!

 

“दुनिया में गम सिर्फ़ उस बात का करना चाहिए, जिसे वापस न पाया जा सके और बाकी के गम तो सिर्फ़ अपनी नाकामयाबियों को छिपाने के बहाने हैं।”

भिलाई। ज्ञानेश साहू के उपन्यास गुगली की यह पंक्तियाँ युवाओं को आगे बढ़ने को ख़ासा प्रेरित कर रही है इसीलिए फ्लिपकार्ट और अमेज़न पर यह उपन्यास सभी वर्गों द्वारा खरीदा जा रहा है।

गौरतलब है कि गुगली भिलाई के ऐसे अल्हड़ दोस्तों की कहानी है जो दोस्तों पर अपना जान छिड़कते हैं और उनके लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं। इसके दोस्ती की मुख्य वजह क्रिकेट है। इसीलिए कहानी भी 2007 वर्ल्डकप से शुरु होती है जहाँ इंडिया बांग्लादेश से हार जाता है और कहानी का अंत 2011 वर्ल्डकप में धोनी के सिक्स के साथ होता है।

गुगली छात्र जीवन के सुनहरे पलों की याद दिलाती है जो हम सबने कभी ना कभी जिया है। स्कूल के आख़री और कॉलेज के शुरुवाती दिनों को ज्ञानेश ने 18 खंडो में रोचक तरीके के साथ पेश किया है। कभी कहानी में नवदीप जैसे पात्र पेट पकड़कर हँसने को मजबूर करते हैं तो कभी कमलेश और आकाश के बीच का संवाद आँखों में नमी ला देता है।

इस कहानी को ज्ञानेश ने भिलाई और छत्तीसगढ़ के परिपेक्ष में लिखा है इसीलिए हर घटनाक्रम में पाठक भिलाई के लोगों के रहन -सहन और संस्कृति को महसूस कर सकता है। साथ ही साथ भिलाई स्टील प्लांट, मैत्री गार्डन और चित्रकोट जलप्रपात का वर्णन पाठकों के लिए सोने पर सुहागा जैसा है।

वर्तमान में ज्ञानेश साहू आई टी कंपनी में कार्यरत है और समय मिलने पर कुछ ना कुछ लिखते ही रहते हैं। गुगली ज्ञानेश का पहला हिन्दी उपन्यास है। इसके पहले अपने इंग्लिश उपन्यास के लिए भी ज्ञानेश चर्चा में रह चुके हैं।

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